सावित्रीबाई फुले : जीवन जिस पर अमल किया जाना चाहिए

7 जनवरी को दलित शोषण मुक्ति मंच (DSMM), दिल्ली ने भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की 187वें जन्मदिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया न्यूज़क्लिक प्रोडक्शन 09 Jan 2018 7 जनवरी को दलित शोषण मुक्ति मंच (DSMM), दिल्ली ने भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले […]

मास्टर सतबीरः हरियाणवी संस्कृति का अनमोल रत्न

स्मृति शेष मास्टर सतबीर द्वारा गाए सांग व किस्से भगत सिंह,  सुभाष चन्द्र बोस, उधम सिंह, अंजना पवन, नल दमयन्ती, वीजा सोरठ, चापसिंह, जयमल फत्ता, पिंगला भरथरी, जानी चोर, शाही लकड़हारा, रूप बसन्त, सरवर नीर, कृष्ण सुदामा, कृष्ण जन्म, उतानपाद, भगत पूरणमल, हूर मेनका, चन्द्रहास, मोरध्वज, हीर रांझा, गोपीचन्द, चीर पर्व, विराट पर्व, सत्यवान सावित्री, लीलो चमन, पदमावत, चन्दकिरण, हीरामल […]

सहजानंद सरस्वती – किसानों में चेतना

                गत वर्षों ने भारतीय किसानों के भीतर दर्शनीय जागृति एवं संगठन शक्ति की असाधारण बाढ़ देखी है। यही नहीं कि उसने देश के सभी सार्वजनिक तथा जनतांत्रिक आंदोलनों में पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा भाग लिया है; वरन एक श्रेणी की हैसियत से अपनी स्थिति को भी […]

अंजू – कृषि और महिलाएं

आलेख हमारा प्रदेश कृषि प्रधान है। प्रदेश की जनसंख्या का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा कृषि के कार्य में संलग्न है। यहां के निवासियों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि होने के कारण हमारी अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। कृषि के कार्य में औरत और पुरुष की दोनोंं […]

मदन भारती – अनुष्ठान

 कविता शहर में कर्फ्यू है सब घरों में घुस जाएं इक ऐलान अचानक फैल जाता है। घरों में रहने वाले ओर भीतर हो जाते हैं। शहर में कर्फ्यू है सेना का बसेरा है शहर जंगल में तबदील है सबने जंगदार हथियार संभाल लिए हैं उपद्रवियों के सामने सशस्त्र […]

मदन भारती – जात

कविता जात कैसी होती है उसका रंग कैसा होता है उसकी पहचान क्या होती रूप कैसा होता है कितनी बड़ी होती दृश्य या अदृश्य गुमान, गर्व या घमण्ड या फिर एक सिरफिरा अहंकार जात एक जात होती है जात मतलब जन्म मतलब! जन्मजात इसे रंग रूप आकार से […]

मदन भारती – राख

कविता स्वाहा सब कुछ स्वाहा, धर्म ग्रंथों मंत्रों, पोथी पत्रों हर कर्म क्रिया संस्कार और हर मंत्रोचारणोपरांत। स्वाह से बनती है राख! राख में क्या है भीड़ द्वारा जलाए गए मॉल में घड़ी जिसकी टिक-टिक बंद है राख अरमानों की सपनों की, जो निर्जीव है और उदासी बनकर […]

मदन भारती – नाक अभी बाकी है

कविता बाहुबली हर बार दिखाते हैं अपनी ताकत बताते हैं अपने मंसूबे बेकसूरों की गर्दनों पर उछल कूद करके हर बार कहते हैं मर्यादाएं मिट रही हैं संस्कृति सड़ रही है नाक कट रही है इज्जत पर बट्टा लग रहा है हम शर्मशार हैं हमारा सर्वोतम गोत्र लड़की […]

मदन भारती – नाक नहीं कटती

कविता बस्तियां जलातें हैं घर में कुकृत्य कर लेते हैं देवर का हक चलता है, जेठ तकता है, ससुर रौंदता है, बस्ती से लड़कियां उठा लेते हैं रेप करते हैं, रेत में दबा देते हैं आग लगा देते हैं जिन्दा भी जला देते हैं ऐसा करने से मर्यादाएं […]

मदन भारती – न्याय का रूप

कविता बस! मजूरी मांगने की हिमाकत की थी उसने। एक एक कर सामान फैंका गया बाहर! नन्हें हाथों के खिलौने, टूटा हुआ चुल्हा, तवा-परात, लोहे का चिमटा, तांसला मैले कुचैले वस्त्र सब बिखरा था गली में। कुछ डूबा था नाली में वही नाली, जिसमें बहता था पूरे गांव […]

मदन भारती – चुप्पी और सन्नाटा

कविता हम आगे जा रहे हैं या पीछे या फिर जंगल आज भी हमारा पीछा कर रहा है आधुनिकता के सब संसाधन इस्तेमाल कर रहे हैं 21वीं सदी के सभ्य सुसंस्कृत समाज में रहते भी हैं पर हम कर क्या रहे हैं कुटुम्ब के सदस्य को मार देतें […]

मदन भारती – दो मांएं

कविता ये लाशें जो जमीन पर अस्त व्यस्त पडी हैं कुछ क्षण पहले ये हंस खेल रहे थे मारने से पहले इन्हें, घर से बुलाया गया था ये मां जो बदहवाश है जो फफककर रो रही है कह रही है मेरा इकलौता बी ए पास बेटा था वर्षों […]

कविता वर्मा – काठ का मन

कविता काठ का मन काठ का तन काठ सा जीवन काठ सी बेजान ख्वाहिशें । टक-टक ठुकती कींल एक एक चाहत में। काठ की हसरतें, संवेदना शून्य ,काठ सी। जमती,गलती सपनों की फफूँदी से सड़ता ,गलता काठ सा मन। विश्वास की धूप को तरसता काठ, सीलन में सिसकता […]

रिसाल जांगड़ा – बाळक हो गए स्याणे घर मैं

हरियाणवी ग़ज़ल बाळक हो गए स्याणे घर मैं। झगड़े नवे पुराणे घर मैं। आए नवे जमाने घर मैं। ख्याल लगे टकराणे घर मैं। मैं जिन तईं समझाया करता। लागे वैं समझाणे घर मैं। छोटे-छोट्यां के बी पड़ग्ये, नखरे-नाज उठाणे घर मैं। छोट्टे मुंह तै बात बड़ी इब, लागे […]

सुभाष चंद्र – कर्ज माफी से कर्ज मुक्ति  न्यूनतम समर्थन मूल्य से निश्चित आय

हाय-हाय रै जमींदारा, मेरा गात चीर दिया सारा। ( दयाचंद मायना) पिछले बीस-पच्चीस सालों से खेती-किसानी का संकट निरंतर गहराता जा रहा है। हताश किसान-आत्महत्याओं का सिलसलिा थम नहीं रहा। सरकारें, नीति-निर्माता इस संकट से निकलने का कोई विश्वसनीय रास्ता सुझा नहीं पा रहे। विकल्पहीनता का संकट यहां साफ […]

मदन भारती – हमारा हरियाणा

कविता   हमारा हरियाणा बडा प्यारा है जगत जहां से न्यारा है यहां के लोग बड़े कमाऊ हैं सीधे हैं, सच्चे हैं बहादुरी तो बस, एकदम कमाल की है संस्कृति निराली है अलग थलग भेष है यहां तो जोश ही जोश है सांस्कृतिक आयोजन का सरकारी भोंपू बेअटक […]

पारिजात – खुदकुशी के साये में जिन्दगी की बातें

  पठनीय पुस्तक कृषि संकट और खासतौर से किसान आत्महत्याओं के बारे में काफी कुछ लिखा जा रहा है। सरकारी रिपोर्टें और टीवी अखबार जहां एक ओर किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़ों और कारणों पर पर्दा डालने में ही ज्यादातर पन्ने काले कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर […]

नारनौल के सतनामी

इतिहास ◊ प्रो सूरजभान सतनामी सम्प्रदाय में जाट, चमार, खाती आदि छोटी जातियों के लोग शामिल थे। परन्तु उन्होंने अपने जातिगत भेद मिटा दिए थे। वे सादा भोजन करते और फकीरों जैसा बाना पहनते थे। सतनामी हर प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ थे। इसलिए अपने साथ हथियार लेकर […]

योगेन्द्र यादव से सुरेन्द्र पाल सिंह की बातचीत – खारिज करना पड़ेगा कृषि विरोधी विकास के मॉडल को

सुरेन्द्र पाल सिंह – आज देश में कृषि के संकट की चर्चा हो रही है। आप इसे कैसे परिभाषित करते हैं? इस संकट के क्या कारक हैं? योगेन्द्र यादव – जब हम कहते हैं कि भारतीय कृषि संकट में है, तो इसका मतलब है कि खेती-किसानी की समस्या […]

डा. सुभाष चंद्र – हरियाणा में  दलित दशा, उत्पीड़न व प्रतिरोध

सामाजिक न्याय पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा में दलित उत्पीड़न के जघन्य कांड हुए हैं जिस कारण हरियाणा का समाज राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय रहा है। हरियाणा का समाज तीव्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। दलित उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं […]

सुनील दत्त – हिन्दी सिनेमा में किसान-जीवन

सिनेमा माध्यम भारत में अपने सौ साल पूरे कर चुका है। सिनेमा ने भारतीय समाज को गहरे से प्रभावित किया है। बदलते हुए समाज को भी सिनेमा में देखा जा सकता है। भारत की अधिकांश आबादी खेती-किसानी से जुड़ी है।  पिछले कुछ समय से खेती-किसानी पर गहरा संकट […]

कौआ और चिड़िया

लोक कथा                 एक चिड़िया थी अर एक था कौआ। वै दोनों प्यार प्रेम तै रह्या करै थे। एक दिन कौआ चिड़िया तै कहण लाग्या अक् चिड़िया हम दोनों दाणे-दाणे खात्तर जंगलां म्हं फिरैं, जै हम दोनों सीर मैं खेती कर ल्यां तो आच्छा रैगा। चिड़िया भी इस […]