कविता

मदन भारती – राख

कविता


स्वाहा
सब कुछ स्वाहा,
धर्म ग्रंथों
मंत्रों,
पोथी पत्रों
हर कर्म
क्रिया संस्कार
और हर मंत्रोचारणोपरांत।
स्वाह से बनती है राख!
राख में क्या है
भीड़ द्वारा जलाए गए
मॉल में घड़ी
जिसकी टिक-टिक बंद है
राख अरमानों की
सपनों की,
जो निर्जीव है
और उदासी बनकर दूर तक उड़ रही है।

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 45

 

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