देस हरियाणा

रामधारी खटकड़

imagesरामधारी खटकड़

जिला जीन्द के खटकड़ गांव में 10 अप्रैल, 1958 में जन्म। प्रभाकर की शिक्षा प्राप्त की। कहानी, गीत, कविता, कुण्डलियां तथा दोहे लेखन। समसामयिक ज्वलंत विषयों पर दो सौ से अधिक रागनियों की रचना। रागनी-संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। वर्तमान में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक में कार्यरत।

 

धर्म के ठेकेदारां नै ये भोले लोग बहकाए

म्हारे देश म्हं बिन मतलब के कितने कत्ल कराए

पाखण्डां म्हं फंसा कै इननै, कर दिए मोटे चाळे रै

मन्दिर-मस्जिद के झगड़ां नैं, ठावैं बोटां आळे रै

अपणा मतलब काढ़ण खातर, खींच दिए अडै़ पाळे रै

इन्सानां की कद्र करैं ना, भीत्तरले के काळे रै

होए ज्यान के गाळे रै, घर लोगां के जळवाए

 

सन् 47 म्हं देश बांट कै, बहोते खून बहाया था

मारकाट करी बदमासां नै, लूट का जाळ फैलाया था

छोटे-छोटे बाळक मारे, औरतां पै जुल्म कमाया था

कर्म-काण्ड करण आळ्यां नै, आग मैं घी गिरवाया था

फायदा उननै ठाया था, जो कुर्सी के थे तिसाए

 

असली मुद्दे भुला दिए जो चाहिए जिन्दगी म्हारी म्हं

अंधविश्वास फैला कै इननै, रोक्या राम पिटारी म्हं

धन आळ्यां की चाल सै लोगो, खोल सुणा द्यूं सारी मैं

जनता टोटे म्हं फंस री, फिर गेरैं फूट बिचारी म्हं

जे आज्या अकल तुम्हारी म्हं, ना उजडैं बसे-बसाए

 

धन आळे न्यूं चाहवैं सैं, ये गरीब रहैं लड़-भिड़कै

अफवाह ठा दे बुरी-बुरी, फिर बादळ की ज्यूं कड़कै

मरवाणा उननै चाह्वै सैं, जो जीवैं सैं मर-पड़कै

राम-रहीम बी मदद करैं ना, दोनूं लिकडै जड़कै

रामधारी की आंख म्हं रड़कै, जो फूट गेरणा चाहे

2

इराक के अन्दर अमेरिका न्यूं लाग्या करण तबाही

बम-मिसाईल बरसण लागे धूमा धार मचाई

 

थी घणै दिनां तै नजर तेल पै, सब कब्जाणा चाह्वै था

सद्दाम तै खतरा दुनिया को, न्यूं सबपै हां भरवावैं था

टोनी ब्लेयर चमचा उसकी गेल्यां नाड़ हिलावै था

खरीद किसे नै बस म्हं करग्या, किसे नै आंख दिखावै था

सारी दुनिया नाट्टै थी पर कोन्या पार बसाई

 

यू. एन. ओ. कै ठोकर मारी, वा भी दरकिनार करी

लाखों पल्टन झौंक-झौंक ओडै आग लाण नै त्यार करी

बिजली-पाणी नष्ट करे सब, जनता न्यूं लाचार करी

बम कलस्टर बरसण लागे, घणी कसूती मार करी

बच्चे, बूढ़े खूब मरे ओडै मरे बाहण और भाई

 

मुक्ति तुम को दिलवाऊंगा, जनता को बहकाण लग्या

हथियार डाल इब करो स्वागत, कह कै मूछ पिनाण लग्या

इराक भी अपणी इज्जत खातिर जान की बाजी लाण लग्या

जहाज पड़े और टैंक जळे न्यूं उसको मजा चखाण लग्या

धू-धू करकै कुएं जळगे, जळी तेल की खाई

 

दुश्मन घर म्हं आण बडै़ तो और नहीं कोय चारा

मरण-कटण नै त्यार होए वो देश था जिनको प्यारा

हार-जीत का जिकर नहीं सै, कोए जीत्या कोए हार्या

रामधारी कह खटकडिय़ा नू शेरां के गुण गार्या

देश दूसरे संभळो ना तै थारी भी स्यामत आई

 

2

जमादार की बेटी सूं मैं खोल सुणाऊं सारी हे

जिन्दगी बीतै सै कष्टां म्हं, मोटी सै लाचारी हे

 

पेट भरण की खातर हमने भारी दुखड़ा ठाणा हो

सिर पै मैला, कूड़ा, कचरा दूर फैंक कै आणा हो

करां सफाई गळियां की न्यूं अपणा फर्ज पुगाणा हो

रूखा-सुखा टुकड़ा हमनै घर-घर जाकै ल्याणा हो

मर-मर कै या जीवै जग म्हं दलित जात की नारी हे

 

कोय मस्टण्डा देख कै हमने, अपणी नीत डिगाया करै

भूण्डे-भूण्डे करें इशारे, अपणे घरां बुलाया करै

कदे पिस्से का लालच दे कै हरे-हरे नोट दिखाया करै

इज्जत कारण ना बोलां पर शर्म भतेरी आया करै

जी म्हं आवै गुण्डे कै इब मारुं खींच कटारी हे

 

मजदूरी भी करां खेत म्हं, मेहनत करकै जिया करां

छूआछात भी मिट्या नहीं सै, चीज दूर तै लिया करां

न्याय मिलता नहीं किते भी, खूब दुहाई दिया करां

पंचायत भी सै ठाढ़े की, घूंट सबर की पिया करां

समाज म्हं कती कद्र नहीं या सबतै बुरी बीमारी हे

 

बेड़ी तोड़ बगाणी हो इब होल्यो सब तैयार सखी

इसे जीणे तै मरणा आच्छा रोज रह्या जो मार सखी

आसमान तक ईब उठाओ क्रान्ति की गुंजार सखी

सही दिशा म्हं चाल्लो सब बणकै खुद हथियार सखी

रामधारी का भी खून उबळज्या, ऐसी द्यो किलकारी हे

जिन्दगी बीतै सै कष्टां में, मोटी सै लाचारी हे

 

3

सुण सपने का जिकर करूं मै नेता बणग्या भारी

चुनाव जीत कै बण्या मनिस्टर होई हकूमत म्हारी

 

जवानी म्हं कालेज गया तै पढ़णे म्हं जी लाग्या ना

बदमाशां की रह्या टोली म्हं देख्या पाछा-आगा ना

बहोत घणां समझाया था मैं, बोल मेरे कति लाग्या ना

तरहां-तरहां के खेल-खिलाए भाग मेरा कति जाग्या ना

इब राजनीति म्हं शामिल होग्या सुणो हकीकत सारी

 

चरण पकड़ कै बडे-बड्यां के उनकी गेल्यां जाण लग्या

बदमाशी छोड्डी छोटी-मोटी बड्डे गुल खिळाण लग्या

नजायज कब्जे मनै कराए माल ओपरा खाण लग्या

सारी ढाळ की ऐश मिली मैं पीवण और पिळाण लग्या

गांधी टोपी खद्दर धारकै अकल देश की मारी

 

फिर पार्टी का टिकट मिल्या मनै पहले स्कीम बणाई थी

जात-गोत का नारा लाकै माळा खुब घलाई थी

नीची जात की पर्ची तो मनै हांगे गिरवाई थी

बूथां ऊपर करके कब्जा जै-जै कार कराई थी

ऊपर तक जब राज म्हारा था मिली मदद सरकारी

 

झण्डी आळी कार जब फुल्या नही समाया रै

जितनै यार-सगार फिरै थे उन्हे नौकरी लाया रै

रोज घोटाळे कर करकै मनै पीस्सा खूब कमाया रै

आंख खुली फिर बेरा पाट्टा भूण्डा सपना आया रै

‘रामधारी’ जिसे ऊतां कै या सूत जो की आरी

 

4

उठ किसान क्यूं नींद म्हं सोवै, दुश्मन नै पछाण ले

आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां नै जाण ले

 

सारा साल खेतां म्हं मरता, खून पसीना एक करै

जाडा-पाळा, कीड़ी-कान्डा, ना किसे किसम का खौप तेरै

तन पै तेरे पाट्टे लत्ते, आंख्यां के म्हं धूळ भरै

तेरा नाज मण्डी म्हं हान्डै, बणिया उसे नीलाम करै

यू चक्कर सै घणा कसूता, अपनी जेळी ताण ले

आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां नै जाण ले

 

बोटां आळे बेकूफ बणाज्यां, ताऊ-ताऊ कर्या करैं

धौळ-पोस के काम लिकड़ज्यां, तेरै बरगे मर्या करैं

इनके झूठे वादे भाई, तेरै क्यूकर जर्या करैं

छोरा लुवाण नै करजा ले लिया, सारी उम्र तौं भर्या करैं

इन चालां ने समझ रै बावळे, मेरी बातां नै मान ले

आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां नै जाण ले

 

मन्दर-मस्जद के झगड़े म्हं, ना भाई-भाई तकरार करो

इन्सानां की ढाळ रै लोगो, इक दूज्जै तै प्यार करो

लूट अड़ै तै खतम होवै तुम, इसा कसूता वार करो

जे जिन्दा तुम रह्णा चाहो, अपणी लाठी त्यार करो

तेरे हक पै डाका पड़ण लागर्या, कर अपणा तराण ले

आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां ने जाण ले

 

ईब तनै जी तै मारैंगे डंकल चाल्या आवै सै

सबसीडी न घोळ कै पीगे, अमरीका कांख बजावै सै

फाळी की बन्दूक बणाले, जे सुख तै जीणा चाहवै सै

रामधारी नै कफन बांध लिया, गेल्यां तनै बलावै सै

हरियाणा म्हं पाज्यागा, तौं उसकी माटी छाण ले

आप लड़्यां बिन मुक्ति कोन्या, इन बातां नै जाण ले

 

5

मेरे तो मन मैं हुई-उचाटी

मजदूर तेरा हाल देख कै छाती आवै पाटी

 

बिल्डिग़ बणावैं बड़ी-बड़ी तू तेरा काम खोटा सै

मामूली सी मिलै मजदूरी तेरे घर मैं टोटा सै

ठेकेदार बदमाश घणा वो खावै मुनाफा मोटा सै

तेरी औरत तेरी गेल्यां मिलकै पत्थर कूट रही

बाळक तेरा रेत्ते मैं रोवैं, ममता तक भी छूट रही

संसार बसावणियां तू सच्चा तनैं व्यवस्था लूट रही

पूंजीपति की छूट रही सदा तेरी पिट्टै माटी

 

किते काम करै मील मैं सूखकै तू माडा होग्या

दम घुट ज्या सै भट्ठी धोरै तेरै जी नै खाड़ा होग्या

टी.बी. का मरीज बणै, बिना इलाज पुआड़ा होग्या

किते खान मैं उतर रहा तू जान हथेळी पै धरकै

लोहा-पीतळ-कोयला काढै सांस लेता मर-मरकै

मोटा होग्या पेट सेठ का माल तिजोरी मैं भरकै

सुणले ध्यान उरै करकै या बेडी क्यूं जा काटी

 

सात बरस का बेटा तेरा काम करै सै ढाबे मैं

काच्ची कलियां सूख रही ज्यूं फसल सूखज्या गाभे मैं

पाप छिपावण खातर अपने सेठ जार्या काशी-काबे मैं

किते बर्तन का कारखाना कालीन किते बणावै तूं

अपणी ताकत झोंक-झोंक, दुनियां नई बसावै तूं

चीज बणकै त्यार होज्या मोल लेण ना पावै तूं

बहोत घणा दुख ठावै सै तू तबीयत होज्या खाटी

 

मेरा नाम किसान सै मैं तेरा साथी असली रै

झूठा जाळा से किस्मत का नीति सारी नकली रै

खून चूस्या हम दोनों का इज्जत म्हारी तक ली रै

मैं भी तेरे साथ रहूं तू मेरी गेल्यां हाथ मिला

हम दोनों सां असली ताकत हम बिन ना संसार चला

रामधारी संग मिलकै ईब हकूमत दिए हिला

क्रान्ति की मशाल जला या जनता कदे ना नाटी

सं. सुभाष चंद्र, हरियाणवी लोकधारा – प्रतिनिधि रागनियां, आधार प्रकाशन पंचकुला, पृ. 219 से 226

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