देस हरियाणा

हमेशा चिंता में गात रहा न्यूए दसौटा काट्या – खान मनजीत भावडिय़ा

रागनी


हमेशा चिंता में गात रहा न्यूए दसौटा काट्या,
कद आया बचपन कद आई जवानी कोन्या बेरा पाट्या (टेक)

 

घास ल्याणा सान्नी-सपान्नी सदा काम में हाथ बटाणा,
गधे चराके, घोड़ी चराके, फेर खेलन न जाणा,
बैठ खाट पै दादा गेल्या, अपणा फर्ज पुगाणा,
रोटी का ब्यौंत करण नै, पड़ग्या सै मुसळ रोज बजाणा,
होक्का भर ल्याणा घेर बेठ्या न्यू बैठ्या दादा कहानी सुनाणा,
जै मिलज्या टेम शाम-सवेरे, फेर स्कूल काम का निपटाणा,
मैं आपणा फर्ज निभाऊं सू, नहीं ठीक सै सिर पै उल्हाणा,
जो मिलज्या ओढ़-पहर लिया ना कदें, आछा भूण्डा छांट्या,
कद आया बचपन कद आई जवानी कोन्या बेरा पाट्या।

पढ़कै आया बस्ता फैंका आकै रूखी सुखी खा ली,
बस्ते मैं तैं काढ़ तख्ती मन्नै चाक्की धौरे ला ली,
आरने चुग के ल्याऊं खेत तै हाथ में बोरी ठा ली,
बिटोड़ा धरवाऊं अर गोस्से बणवाऊ फेर मगरी ऊपर ठा ली,
घणी करड़ी तिस लागरी जिब जान मरण मैं आ ली,
लामणी, करां खेत ज्याकै, मां ज्वारा सिर तै ठा ली,
छाले पडग़े फेर फुटगे, पाया के न्यूए जवानी जा ली
मेरे हाण के खूब खेल्या करते, मेरा काम नै काळजा काट्या,
कद आया बचपन कद आई जवानी कोन्या बेरा पाट्या।

इब तक मैं पैर तुड़ाऊ दखे ना नौकरी ठ्यायी,
ना चाचा, ना ताऊ, ना रिश्तेदारी न राह दिखायी,
कर्जा क्यूकर लेऊं घणा, इसने तारण मैं सामत आयी,
ब्याह होग्या फंसी गृहस्थी, सिर पै आण चढ़ी करड़ायी,
कदे ब्याह म्हं, कदे मुकाण म्हं सदा जाणा पड़े सै भाई,
घरां कोन्या पिस्सा धेल्ला, ना बेबे तीळ कदे समायी,
नूण तेल ने घेर लिया मैं, मन्नै कोन्यी राहत पाई,
सारा ओट्या बोझ खुद, ना कदे मन्नै बांट्या,
कद आया बचपन, कद आई जवानी कोन्या बेरा पाट्या।

जितणी गरीबी उतणा रोणा, इसतै न्यारी बात नहीं,
कमा कै हाड़ तुड़ा लिये भाई ना बणी कोए बात सह
ना रोटी, ना कपड़े, सिर कै ऊपर तक छात नहीं,
ये लकीेरें हाथ की भाई, आज ये तेरे काम नहीं,
तेरा सारा कुछ ठीक ना, तेरे ऊपर छान नहीं,
टपज्या तेरी जवानी बाई-पास माणस या तेरे हाथ नहीं,
खान मनजीत तू हिम्मत राखै, कदे पावै ना मात नहीं,
चलता रहा सदा मन्नै ना हार मानी, ना काम तै कदे नाट्या,
कद आई जवानी कद आया बचपन कोन्या बेरा पाट्या।

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