चिड़िया – बी मदन मोहन
बाल कविता चिड़िया मेरे घर की छत पर रोज फुदकती है रुक-रुक अपनी भाषा में जाने क्या बोला करती है टुक-टुक। उसकी बोली को सुन-सुनकर नन्हें चूजे आ जाते आंगन में बिखरे दानों को चीं-चीं करते खा जाते शैतानी करते मनचाही मां के पीछे लग जाते पंक्ति बांध […]